Monday, May 30, 2011

महेन्द्र नेह की कविताए

            नया विहान



नदियॉं कहीं भी बहती हो


दरख्त कहीं भी खड़े हों

शब्द किसी भी भाषा के हों

कीमतें सभी की अंकित हो चुकी हैं

वैब साइट पर

कीमतें तय कर दी गई हैं

बशर्ते कीमतों का औचित्य

समय रहते समझा जा सके

और अपनी -अपनी कीमत पर

बिना किसी ना नुक्कार के सहमति के

अँगूठे लगा दिए जाएं

कीमतों का नया विहान आ गया है।

सुनहरी विदाइयों , कारखानों, दफ्तरों, खेतों मे

सामूहिक हाराकीरी का

नया विहान आ गया है

अपनी भव्यता और दिव्यता के साथ दिपदिपाता

नए साजों के साथ थिरकने का

सुनहरी विदाइयों और सामूहिक हाराकीरी पर

जश्न मनाने का

सगे सबंधियों , भाइयों , दोस्तों

पडोंसियों और महबूब को मिटते

उजडते हुए देखने का

रंगीन पृष्ठों और

सूचना तंत्र की कौतुकी दुनिया में

डुबकियॉं लगाने का

नया विहान आ गया है

कीमतें सभी की अंकित हो चुकी है

वैब साइट पर।
 

सब कुछ ठीक-ठाक नहीं
सब कुछ ठीक ठाक नहीं

हर एक खत की शुरूआत

आखिर कब तक

उसी रिवायती तर्ज पर?

अपने ही आत्मीयों

परिजनों से

बरसों -बरस से

एक फरेब ?

''सब कुछ ठीक -ठाक है यहॉं''

''कुशलपूर्वक हैं सब''

''सब स्वस्थ व सानंद है यहॉं''

कब तक

दोहराए जाते रहेंगे

ये आप्त वाक्य?

लिखो कि

अब तक जो कुछ लिखा

सही नहीं था

लिखो कि

कर्ज के भीषण बोझ से

दबे हुए हो तुम

लिखो कि

तुम्हारे घर में

एक बेटी होती जा रही है जवान

और अब उसकी

सही उम्र को

समाज में छुपाना

नहीं रहा मुमकिन

लिखो कि

ऊपर से शांत दिखनेवाले

तुम्हारे घर में

हमेशा मचा रहता है -एक कोहराम

लिखो कि

लाख कोशिशों के बावजूद

बेरोजगारी की आग में

झुलस रहा है तुम्हारा जवान बेटा

लिखो कि

वह देर रात लौटता है घर

लिखो कि तुम्हारे पूरे परिवार की

नींद गायब हे लंबे समय से

लिखो कि

लाइलाज बीमारियों से

घिरता जा रहा है

तुम्हारा समूचा परिवेश

लिखो कि

तुम्हारा स्वयं का काम भी

नहीं रहा सुरक्षित

लिखो कि

सब कुछ ठीक -ठाक नहीं है

लिखो कि सब कुशलपूर्वक और

सानंद नहीं है।