Sunday, April 8, 2012

आठवे दशक की लघुकथाए -3



पेट का माप

सुशीलेन्दु  
      
       अफसर बोलता जा रहा था....हाइट पांच फीट छः इंच ....चैस्ट चौतींस छत्तीस.....वेट एक सौ पैतालींस पौंड ....क्वाइट फिट तुम इधर आ जाओ जवान।
युवक किनारे खिसक गया और चारों तरफ देख कर झिझकता हुआ बोला....सर
यस बोलों क्या बात है A
युवक सहमता हुआ बोला....सर आपने मेरी लम्बाई  सीना वजन आदि को मापा परंतु .... परंतु आप शायद मेरे पेट का माप लेना भूल गये, सर मैं तो केवल पेट भरने के लिए ही......वह आगे नहीं बोल पाया।
       ऑफीसर ने युवक को बड़े ध्यान से देखा और फिर हो - हो कर हॅंसते हुए बोला ....यहॉं सीना का माप लिया जाता है जवान  पेट का नहीं और सच तो यह हैA यंगमेन आज की दुनिया में कम से कम अपना पेट हो भी तो उन्हें मापा जाय आज तो हरेक इन्सान का पेट टुकड़ो  - टुकड़ो में बट कर बिखर चुका है ....उन्हें हम कहॉं ढूढते फिरें.....उन्हें कहॉं कहॉं खोज कर मापा जाय, युवक हक्का -बक्का सा ऑफिसर को देखता रहा जो अब दूसरे जवान के सीने पर टेप रख रहा था!


( अतिरिक्त-अंक ५ अगस्त १९७२)

¼ कात्यायनी'(लखनऊ, संपादक:अश्विनी कुमार द्विवेदी) के जून 1972 अंक में छपी थी। ½