Friday, November 7, 2008

रघुनाथ मिश्र की गजलें





रघुनाथ मिश्र की गजलें
1
मुल्क की हालत , बड़ी गम्भीर है।
प्रश्नचिन्हों में घिरी , तस्वीर हैं ।
चल रहीं हैं , बे-नियंत्रित आँधियाँ,
गर्दनों पे घूमती , शमशीर है ।
आम जन हैं, हसरतों में मौत की,
जिंदगी कुछ खास की जागीर है।
मंजिलों की ओर बढ़ते पाँव को ,
रोकती वर्चस्व की , जंजीर है ।
उग रहे हैं भूख के , जंगल घने ,
मौसमों में दर्द की , तासीर है ।
आरजूएँ लुट गई , इन्सान की ,
चन्द सिक्कों में बिकी तदबीर है॥
शमशीर :- बीच में झुकी हुई तलवार , वर्चस्व :- तेज , प्रबलता , तदबीर :- उपाय , युक्ति

1 comment:

Udan Tashtari said...

आरजूएँ लुट गई , इन्सान की ,
चन्द सिक्कों में बिकी तदबीर है॥


-रघुनाथ मिश्रा जी को पढ़ना अच्छा लगा.