Thursday, November 19, 2015

हराम का खाना














श्याम बिहारी श्यामल

चमरू की नवोढ़ा पतोहू गोइठे की टोकरी माथे पर लिए सामने वाली सड़क से जा  रही थी.रघु बाबू ने पत्नी से कहा –देखो मैंने कहा था न कि गरीबों की बहुओं को कोई क्या देखने जायगा !        वह तो दो चार दिनों में गोइठा चुनने ,पानी भरने के लिए निकलेगी ही .                     यह बात चमरू की पतोहू ने सुन ली .बात उसे लग गयी .                               
-हाँ बाबूजी ,हम लोग कोई हराम का तो खाती नहीं हैं कि महावर लगाकर घर में बैठी रहूँगी .काम  करने पर ही पेट भरेगा . चमरू की पतोहू ने रघु बाबू को सुनाकर कहा और पूरे विश्वास के साथ आगे बढ़ गई .                                                         
रघु बाबु सिठियाये से उसे जाते देखते रह गए .

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