Monday, July 7, 2008

जाति मर्यादा



इन्दिरा खुराना
चैत प्रतिपदा से सनातन धर्म मन्दिर में रामायण पर प्रवचन चल रहा था । अयोध्या से श्री कौशल गिरि जी महाराज आए हुए हैं । भगवान राम के जीवन के अगणित प्रसंगो द्वारा उनके हृदय की उदारता , दयालुता और गुणों का ऐसा विशलेषण करते कि भक्तगण विभोर हो उठते थे । शाम चार बजे से छ: बजे तक मन्दिर के विशाल प्रांगण में पैर रखने की भी जगह न रह्ती थी । आज निषादराज गुह की राम के प्रति अनन्य भक्ति और भगवान राम की निषाद के प्रति भक्तवत्सलता का मार्मिक वर्णन किया गया । श्रोतागण जाति सम्प्रदाय से उपर भावलोक मे पहुँच गये ।
कल्याणी प्रवचन सुनकर घर पहुँची तो देखा बाहर बैठक मे बेटे प्रकाश के कई मित्र हँसी, मखौल , बातचीत का आंनद ले रहे थे । माँ को देखकर प्रकाश ने भीतर आकर बताया कि उसके इंटरव्यू में सिलेक्ट होने पर मित्र बधाई देने आए हैँ ।
"अच्छी बात है बेटे , इनकी खातिरदारी की ?" कल्याणी ने पूछा ।
"आप मँदिर गयी थीँ , मैं तो चम्पा को बुला लाया था। उसने चाय और पकौड़े बनाए और मैं बाजार से मिठाई ले आया ।"
"अरे चम्पा चमारिन ! वह मेरे चौके मे घुसी थी । अरे! मेरा तो सारा चौका अपवित्र हो गया ।" कल्याणी ने गुस्से - से भरे स्वर मे कहा ।
"अरी माँ ! तेरा चौका अपवित्र नहीं हुआ , बल्कि उसने चमका दिया है। वह तो काम मे बड़ी सुघड़ और साफ सुथरी है ।"
"अरे ! उसे तो गोबर पाथने और गोशाला साफ करने के लिए रखा है और तूने उसे चौके में घुसने दिया, सामान को हाथ लगाने दिया ।" कल्याणी ने तिलमिला कर कहा ।
"माँ ॰ राम ने भी तो भीलनी शबरी के बेर खाए थे ?" बेटे ने दार्शनिक भाव से समझाते हुए कहा ।
"अरे चुप ! अब मुझे ज्यादा न सिखा । भगवान राम कुछ भी कर सकते हैँ , पर हम जात - मर्यादा में बँधे हैं , समझा !"
प्रकाश ने समझ लिया कि माँ , प्रवचन के भावलोक से पुन: जाति- पाँति के घेरे में घिर गयी है। अत: उसने चुप रहना ही उचित समझा ।

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