Monday, September 15, 2008

रुतबा



माधव नागदा

गाँव में दो शादियाँ एक ही दिन थी । सौभाग्यकांक्षिणी ठाकुरपुत्री के बरात आ रही थी , जबकि चिरंजीव चमार की बरात जा रही थी । मह्त्व लगन का उतना नहीं था, जितना कि महारात्रि का । इस रात धूम - धड़ाके और बाजे - गाजे के साथ दुल्हा , दुल्हन की बन्दोली निकलने वाली थी। किसी ने ठाकुर साहब को सूचना दी , "इस बार चमारों की बन्दोली घोड़े पर निकलेगी ।"
ठाकुर साहब पहले ही से मूँछों को बट दे रहे थे । बट खा - खा कर जब मूँछें केकड़े के डंक की तरह हो गयी तो वे बोले , "लट्ठ बाजों को कह देना तैयार रहें ।"
"अरे नहीं ,हुजूर । कानून इन्ही का रखवाला है। आजकल तो सीधा गैरजमानती वारंट आता है । कुछ ऐसी तरकीब भिड़ाई जाय कि अपनी बंदौली का रुतबा ऊँचा रहे।"
"हम माइक वाला बैँण्ड लायेंगे ।"
"हुकुम ,चमार भी वही ला रहे हैं ।'
"तो हम साथ मैं जनरेटर भी लायेंगे। दोनों ओर दस-दस ट्युबलाईटें।"
"बड़ो हुकुम , वे बारह-बारह ला रहे हैं।"
"अच्छा ।" ठाकुर साहब की बायीं मूँछ फड़की । वे कुछ देर सोचते रहे । एकाएक उनकी आँखो में चमक दौड़ गयी, " अपने बाइसा की बंदोली कार में निकालेंगे । है हिम्मत चमारों की ?
" परंतु अन्न्दाता , रास्ता बहुत खराब है , सँकरा है । पिछ्ली बार अकाल राहत का पैसा आया, वह सब तो हवेली में…।"
ठाकुर साहब गाँव के सरपंच भी थे । अकाल राहत के धन ने उन्हें कितनी राहत दी , वे खूब अच्छी तरह जानते थे। इसलिए बोले कुछ नहीं , सिर्फ आँखें तरेरीं और फिर से सोचमग्न हो गये । सोचते -सोचते न जाने क्या बात सूझी कि जोर से हँस पडे। एक दीवारकम्प ठहाका। जब हँसी कुछ रुकी तो पेट थाम कर बोले , "अच्छा ही किया जो हमने मार्ग नहीं बनवाया, वरना ये चमारटे कार भी ले आते," फिर जरा तेज होकर बोले , "रुतबे की ही बात करते हो तो बोलो , हमारे मुकाबले की हवेली है, किसी चमार के पास? बोलो, है?"

No comments: