Saturday, July 3, 2021

 

शिक्षा

 

अध्यापक ने अँग्रेजी का नया पाठ आरम्भ करने से पहले छात्रों से पूछा, “होमवर्क कर लिया है?” चालीस में से दस बच्चों ने कहा, “हाँ सर, कर लिया है।बाकी बच्चे चुप रहे। अध्यापक ने उन बच्चों को खड़ा होने का आदेश  दिया, जो होमवर्क करके नहीं लाए थे। अध्यापक अब एक-एक से ऐसे सवाल पूछ ने लगा, जैसे थानेदार किसी अपराधी से पूछता है।

होमवर्क क्यों नहीं किया?” अध्यापक ने एक से कड़ककर पूछा।

वह चुप। बच्चे सहम गए।

मैं पूछता हूँ, होमवर्क क्यों नहीं किया?”

फिर चुप्पी।

अबे ढीठ, बोलता क्यों नहीं? क्या जबान कट गई है? वैसे तो क्लास को सिर पर उठाए रहोगे, लेकिन जब पढ़ाई-लिखाई की बात आती है तो इनकी नानी मर जाती है। बोलो, होमवर्क क्यों नहीं किया?”

सर भूल गया।सुरेश  ने डरते-डरते कहा।

भूल गए! वाह! साहबजादे भूल गए! खाना खाना क्यों नहीं भूला? कपड़े पहनना क्यों नहीं भूला? बताओ।अध्यापक ने उसका मखौल उड़ाते हुए कहा। लड़का चुप। सिर झुकाए खड़ा रहा। अपराध बोध से ग्रसित।

अध्यापक दूसरे बच्चे के पास जाता है।

और कुन्दन तुमने होमवर्क क्यों नहीं किया?”

सर, मेथ्स का काम बहुत था।टाइम ही नहीं मिला।

अच्छा तो तुम मेथ्स का काम करते रहे! इंगलिश अपना भुगतान ले लेगी बच्चू, समझे!अध्यापक ने धमकी दी।

अध्यापक तीसरे बच्चे के पास गया।

क्यों बद्री प्रसाद जी, आपने काम क्यों नहीं किया?”

सर, काम तो कर लिया लेकिन कॉपी नहीं लाया।

क्या कहने! क्या खूबसूरत बहाना बनाया है। तुम जरूर राजनेता बनोगे।पढ़ने से क्या फायदा! जाओ और एम.एल.ए का इलेक्शन लड़ो।

और तुम्हारा क्या कहना है?” चौथे छात्र के पास जाकर पूछा।

तुम क्यों बोलोगे! दिनभर अमरूद तोड़ने के चक्कर में मारे-मारे फिरते हो या कंचे खेलते रहते हो। तुम्हें टाईम कहां से मिलेगा? चोर-उचक्के बनोगे। बाप का नाम  रोशन करोगे। करो, मुझे क्या!

दिनेश, तुम तो अच्छे लड़के थे, तुमने क्यों नहीं किया?”

सर, समझ में नहीं आया।

क्या समझ में नहीं आया?” उन्होंने आवाज को सख्त कर पूछा।

सर, कुछ भी समझ नहीं आया।बच्चे की आवाज काँपी।

माँ-बाप से कहो, थोड़ा बादाम खिलाएँ। मैं घंटे भर भौंकता रहा और तुम्हें कुछ भी समझ में नहीं आया।

सभी लड़के लज्जित, अपमानित, मुँह लटकाए खड़े हैं। अध्यापक विजेता की तरह सीना ताने खड़ा है। सजा-चालीस उठक-बैठक और चार-चार बैंत।

एक लड़का सोचता है -जहाँ इतनी जलालत हो वहाँ क्या भविष्य बनेगा!

दूसरा सोचता है- बेहतर है इस जहन्नुम से भाग चलें।

दाँत पीसता हुआ तीसरा लड़का सोचता है- इस मास्टर ने ऐसीतैसी कर रखी है। इसकी तो अकड़ सीधी करनी पड़ेगी।

चौथा सोच रहा है- यह स्कूल है या जेल! मौके की तलाश  में है कब उसे खिड़की-दरवाजे और बैंच तोड़ने का सौभाग्य प्राप्त हो।

पाँचवाँ कुछ नहीं सोचता। वह भोथरा होता जाता है।

कुंठित और ठस्स।

 

लाइसेंस

 

शराब निरोधक समिति के मेम्बरान क्षेत्र का दौरा कर रहे थे। यह यों भी जरुरी था क्योंकि इस इलाके में कच्ची शराब खूब खींची जाती थी और खूब सप्लाई की जाती थी राज्य में शराबबन्दी पूरी तरह लागू थी।

तुम्हारी आमदनी ही क्या है? उसे भी शराब में डुबो रहे हो! न बच्चों का पेट देखते हो, न बीमारी। शराब तुम्हारे शरीर को खा रही है।एक मेंबर समझा रहे थे।

और फिर तुम कच्ची पक्की निकालते हो, जेल जाओगे, समझे!

वह गिड़गिड़ाया, “माईबाप, आप बजा फरमाते हैं, मगर इसी से तो घर चल रहा है। हैं-हैं-हैं, भला मैं कच्ची पक्की क्यों निकालने लगा। आपकी मेहरबानी होगी  माईबाप, आप तो लाइसेंस दिलवा दीजिए।

मेम्बर उसके मुँह की ओर देखते रहे।

 

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राहत कार्य

 

विधायक मुख्यमंत्री से मुखातिब थे

मेरे जिले में कोई राहत कार्य नहीं खोला गया जबकि पिछले तीन साल से वहाँ सूखा पड़ रहा है।

मुख्यमंत्री समझाने के लहजे में बोले, “भई, सूखा कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार आपके क्षेत्र में बारिश हुई थी।

कौन कहता है?” विधायक गुस्से में बोले, “कैसी कमेटी! मूत जितनी बारिश को बारिश कहा जाता है? जब नया मंत्रिमंडल बना, तब आप कह रहे थे, भाई मेरा बस नहीं है, केंद्र की लिस्ट के मुताबिक मंत्री लिए जा रहे हैं। मैं चुप रहा।

सो तो है।मुख्यमंत्री ने विचलित हुए बिना कहा।

आपने यह भी कहा था, बाद में ध्यान रखेंगे। रक्खा आपने? कई लोग निगमों के अध्यक्ष बना दिए गए और मैं देखता रहा चुपचाप। जब मैं विधायक बना था तब और अब में क्या फर्क है! वही साढ़े सत्ताईस रुपये का कुर्ता-पाजामा पहने हूँ, जबकि दूसरों ने कोठियाँ बनवा लीं, कारें खरीद लीं। मैं ही एक गावदी मिला हूँ।

नहीं भाई, ऐसा क्यों सोचते हो। कहो, मैं क्या कर सकता हूँ।

मुख्यमंत्री समझौते पर उतर आए।

सब अपने चुनाव क्षेत्र में कुछ-न-कुछ करते हैं। मेरा भी तो कुछ हक बनता है।

हाँ-हाँ, बनता क्यों नहीं।मुख्यमंत्री पटरी पर आए।

तो फिर मेरे क्षेत्र में राहत कार्य खुलवाइए और उसकी तमाम जिम्मेदारी मुझ पर छोड़िए।

मंजूर है।मुख्यमंत्री मुस्काए, “हमारे विधायक होकर साढ़े सत्ताईस रुपये गज के कपड़े पहने रहे, तो देश से गरीबी कैसे समाप्त होगी!

 

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अवसरवादी

 

शासक पार्टी टूटने के  कगार पर थी। सत्ता के लिए रस्साकशी थी। आरोप-प्रत्यारोप का बाजार गरम था। जो लोग विधानसभा में बैठकर उबासियाँ लिया करते थे, एकाएक हरकत में आ गए।

शासक दल के एक ग्रुप को शासन में बने रहने के लिए अधिकाधिक विधायकों का सहयोग चाहिए था। निर्दलियों और बैक-बैंचर्स को न्योता गया। जनप्रतिनिधि पेशोपेश में थे। जाएँ तो किधर जाएँ। ऊँट पता नहीं किस करवट बैठेगा। राजनीति के ऊँट का क्या भरोसा! कब किसकी आस्तीन से साँप निकल आए?

हाईकमान कोई कम नहीं था। उसने पैंतरा बदला। निर्दलियों ने पार्टी के साथ सहयोग करने की घोषणा कर दी। बैक-बैंचर्स यकायक महत्वपूर्ण पदों पर पहुँच गए। उनके रुके हुए काम निकलवाए गए। दो नम्बर का खजाना स्विस बैंक से मँगवाया गया। किसानों को राहत देने की घोषणाएँ की गई। उद्योगपतियों को छूट दी गई। 

सत्ता स्वर्ग है, कल्पवृक्ष है। उसके लिए जितना भी किया जाय, थोड़ा है।

मंत्री-पद की शपथग्रहण करते हुए निर्दलीय विधायकों ने वक्तव्य दिया हम राजनीति में स्वच्छता एवं नैतिकता के पक्षधर हैं। अवसरवादी नेता अपने निजी स्वार्थों के लिए सरकार पर दबाब डालते हैं और पार्टी को तोड़ने पर उतारू हो जाते हैं। हम इस तरह की दबाब नीति और अवसरवादी राजनीति के सख्त खिलाफ हैं। अत: हमने निर्णय लिया है कि ऐसे कठिन दौर में हम माननीय मुख्यमंत्री के हाथ मजबूत करें।

 

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चियर्स

 

सर्वोदयी दल ने आज उनका अभिनन्दन किया था। वे इस इलाके में शराबबंदी के सूत्रधार थे।

उन्होंने गांधी-जयंती को शराबबन्दी सप्ताह के रूप में मनाने का प्रस्ताव सभी शराब विक्रेताओं के सामने रखा और उसे स्वीकृत करवाया।

उनकी भी एक विदेशी शराब की दुकान थी। खैर, पेट पालने के लिए आदमी क्या नहीं करता!

शराब विक्रेताओं के अभिनन्दन के बाद शराब की दुकानें बन्द कर दी गई। वे खुशी जाहिर करने के लिए अपने मुनीम के साथ बैठे जश्न मनारहे थे।

आज खूब रही सेठजी!मुनीम ने कहा।

अभी क्या हुआ है! देखते जाओ!सेठजी ने एक गुलाबजामुन गले से उतारते हुए कहा, “मुनीमजी घटिया किस्म के ब्रांड हैं न, जो सालों से पड़े हैं, इस मद्यनिषेध सप्ताह में बेचने हैं, बाकी सारा माल गोदाम में रखो।

आप बेफिक्र रहिए सेठजी!मुनीमजी ने आश्वस्त किया।

सुनो!सेठजी बोले, “पियक्कड़ सात दिन तो क्या सात घंटे भी नहीं रुकेंगे। उन्हें यही घटिया माल ओन्ली अवेलेबल ब्रांडकहकर बेचना है, वह भी हर बोतल पर दस  रुपया ज्यादा लेकर, शराब विक्रेता संघ के सदस्य भी यही सब करने वाले  हैं।

वाह! क्या प्लानिंग है, मान गए सेठजी!

लो, इसे सेलिब्रेट करते हैं!”

दो गिलासों में व्हिस्की ढलने लगी। वे बोले, एक साथ, “चियर्स’’ !

 

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दहशत

 

सूखे खंखाड़ पेड़ों पर  बैठे गिद्ध। गिद्धराज। मोर ढेकुकते-ढेकुकते चुपा गए थे।   लेकिन उनकी आँखों पर आसमान ने एक बूँद नहीं टपकाई।

आदमी पगला गया है। धराव  खूँटे से निर्बद्ध हों, यहाँ वहाँ मुँह मार रहे हैं। घास पचास रुपये हो गया है। परन्तु मिलेगा कहाँ?   

सुना है, सरकार घास की कालाबाजारी खत्म करने के लिए कंटरोल खोल रही है। चूँकि जानवर यह बात सुनकर खुश नहीं हो सकते थे, अत: लोग बुलबुले से फूटने लगे।  

एकाएक ही लोगों ने घास के बारे में बात करनी छोड़ दी। हाय-हाय खत्म। 

जंगलात मुंशी बड़ो भलो आदमी है। ऐड़ा दुस्काल मायने धरम नहीं छोड्यो..खंगार काका उसके गुण गा रहे थे। 

जोड़ (आरक्षित चारागाह) में धराव चरावारो हुकम दे दियो है। एक जानवर रे लारे बीस रुपया लीना है।” .  

लेकिन काका, सरकार ने कैर साली में जोड़ खोल दिए हैं, फिर आप बीस-बीस रुपये क्यों दे आए? रसीद दी है?” काका क्या बोलते! शायद उन्हें बोलना ही नहीं था।  

उस गाँव में खंगार काका जैसे कई रेबारी थे, जिनका पुश्तैनी धन्धा पशुपालन ही है। वे सुबह सूरज निकलने से पहले ही जंगल की राह लेते हैं और साँझ ढले गाँव में आते हैं। नागरिक जीवन के बारे में वे क्या जानें!   

उन्होंने कैसे पैसे जुटाए होंगे? उत्तर हर कोई जानता  है। अमीचंद और मूलचंद के लिये इससे बढ़िया सूदखोरी का मौका नहीं हो सकता था।   

उन्हें संगठित तो क्या इकठ्ठा करना ही मुश्किल था। मुंशी के खिलाफ रपट लिखी जानी थी। रपट पर सभी के अँगूठे के निशान लिये जाने थे। एक घंटे तक पीपल की छाँह में बैठे बतियाते रहे। अँगूठा लगाने को कोई तैयार नहीं हुआ। पहले आप, पहले आप की नबाबी तकरार चलती रही। 

पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर! मगरमच्छ मछलियाँ  गटक कर बाहर बैठा नजारा देख रहा था। एक कुटिल मुस्कान उसके होठों पर नाच रही थी। वह आश्वस्त था।             

किन्तु छोटी-छोटी मछलियाँ मगरमच्छ की दहशत से और गहरे पानी पैठने लगी थीं।

 

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यस सर

 

मे आई कम इन सर!

कम इन।उनकी दृष्टि फाइल पर यथावत रही।     

सर र... आवाज मुझे एक अपराधी सी लगी।     

हाँ, कहो।नजर मेरे चेहरे को तौल रही थी।   

सर एक एप्लीकेशन थी।        

हाँ-हाँ कहाँ है?” उन्होंने प्रश्नसूचक दृष्टि से मेरे हाथ में दबे कागज की तरफ देखा। मैंने काँपते हाथों से कागज टेबल पर खिसका दिया। पूरा शरीर थरथरा रहा था। पता नहीं ठण्ड ज्यादा थी या घबराहट।  

हाँ, तो प्रमोशन चाहिए! उन्होंने व्यंग्य कसा। 

हाँ सर!मैंने हँसने की असफल कोशिश की। 

ठीक है, ठीक है।          

मैं चलने लगा तो बुला बैठे।    

मि.कुलकर्णी, इधर आओ, बैठो।आदेश के अनुसार बैठ गया। बैठते ही कँपकँपी कम हो गई। मगर ह्रदय की धड़कन उत्तरोत्तर बढ़ती गई।       

देखो! वे मेरे कान के पास मुँह लाकर बोले, “मि.नायर का प्रमोशन हुआ, किसी को पता लगा? सब अन्दर ही अन्दर हो गया।     

 मैं मुँह लटकाए, चुप बैठा रहा।            

क्यों? जरा सोचो।मुझे विश्वास में लेते हुए बोले। 

फिर चुप्पी।

तुम बेवजह लोगों की निगाह में आते हो, क्या मिलता है? यहाँ सब रोटी कमाने आते हैं...फिर सलेक्शन कमेटी के मेम्बर कहेंगे, यूनियन का सेक्रेटरी है, सारे प्लाण्ट में अशान्ति का कारण है। तुम्हारा केस वीक पड़ जायगा और मैं फिर स्ट्रोंगली सपोर्ट नहीं कर सकूँगा।

मैं उनके चेहरे की तरफ देखता रहा। धड़कन धीमी पड़ने का एहसास हुआ।

मैं हर बात में ...उम्र में, अनुभव में तुम्हारे पिता की जगह हूँ। मैं तुम्हारा बुरा कभी नहीं चाहूँगा। ऐसा करो, तुम सेक्रेटरी पद से स्तीफा दे दो। अब तीन साल हो गए तुम्हें काम करतेकरते, किसी और को भी काम करने का मौका दो। नया इलेक्शन करवाओ, इसे बपौती बनाकर मत बैठो।

फिर दीर्घ चुप्पी।                                 

यस सर! आप ठीक कहते हैं। मुझे इसे बपौती नहीं बनानी चाहिए। मुझे पता है, मेरे पिता भी होते तो यही सलाह देते।  

धन्यवादकहकर मैं बाहर आ  गया। 

 

दुर्भाग्य

 

यह लड़की दुर्भाग्य वाली है अगर इसका विवाह हुआ तो दोनों परिवार नष्ट हो जाएँगे। गाँव गुरु ने पत्रा देखकर कहा।  

महाराज कोई रास्ता तो बताइये।  हमें लड़की के हाथ पीले करने की बड़ी चिंता है।

-इसके दो रास्ते हैं पहला  इसका विवाह एक कुत्ते से करा दें, दुर्भाग्य कुत्ते के हिस्से में चला जायगाबाद में इसका विवाह किसी पुरुष से कर दें तो संकट टल जायगा।  दूसरा रास्ता यह है कि आप इसे पुरोहित को कुछ दिन के लिए दान दे दें।  वह दान में दुर्भाग्य लेकर उसे अपने तप से नष्ट कर देगा।  बाद में पुरोहित आपकी कन्या आपको वापस कर देगा, तब इसका विवाह किसी सुयोग्य पुरुष से कर देना।

लड़की के घरवालों ने दोनों विकल्प पर सोचा तय हुआ कि लड़की की शादी कुत्ते से कर दी जाय। एक तो यह शादी घरवालों के सामने गुपचुप तरीके से होगी जिससे बात का बतंगड़ न बने फिर हम कुत्ते की तरफ से आश्वस्त हो सकते हैं कि वह कुछ करेगा नहीं लेकिन ऐसी आश्वस्ति हमें  पुरोहित से नहीं मिल सकती।  

महाराज आप तो इसकी शादी कुत्ते से करा दीजिए।  मन्दिर में ही महाराज ने मन्त्र पढ़कर अग्नि के समक्ष लड़की के कुत्ते से फेरे करवा दिए। महाराज ने कहा आज नवदम्पति मन्दिर में रहेंगे, सुबह आकर आप ले जा सकते हैं। घरवाले फिर चिंतित लेकिन अब क्या हो! उन्होंने दुर्घटना होने से पहले सावधानी बरतना ठीक समझा सो मंदिर के बाहर लट्ठ लेकर खड़े हो गए। नौ बजे मन्दिर का दरवाजा बन्द हुआ और महाराज मन्दिर प्रांगण में बनी कुटिया में कन्या के साथ विश्राम करने चले गए।  

कन्या हमारे आगोश में आओ हम तुम्हारे सारे दुर्भाग्य मिटा देंगे।  कन्या सकुचाती हुई उनके पास आई। वे कन्या को आगोश में लेकर चूमने लगे। चूमते-चूमते सारे दुर्भाग्य जो लड़की की देह में यहाँ-वहाँ चिपके थे मिट गए। कुटिया के बाहर कुत्ता जोर-जोर से भौंकने लगा।

वे बाहर खड़े लट्ठ बजाते रहे और महाराज नासमझों की समझ का फायदा उठाते रहे।

 

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बेदखल

 

एक बार जब उसने अपना देश छोड़ा तो लगातार तीन वर्षों तक अपने देश नहीं लौट सका। अकाल की स्थिति साल-दर-साल वैसी ही रही। विस्थापन की पीड़ा को भोगता वह और उसकी लुगाई व बेटी। ठेलागाड़ी चलाकर पेट पालता था लुगाई भी उसमें बराबर मदद करती। कुछेक दिनों बाद बेटी सूमटी को भी कॉलोनी के क्वाटरों में नौकरानी का काम मिल गया। कच्ची बस्ती में एक झौंपडी बनाकर यह परिवार रह रहा था। कुनबे और गाँव के लोग साथ नहीं होने से उन्हें बेगानापन लगता।

समय के साथ आसपास जानपहचान बढ़ने लगी। बेगानापन घटने लगा।   

शहर में रहते-रहते सूमटी साफ-सफाई से रहने लगी, थोडा मेकअप करना भी सीख गई थी। शहरी घरों में साफ-सुथरी नौकरानियाँ ही पसन्द की जाती है। वह बच्चे रखने से लेकर झाड़ू-पौंछा लगाने का काम करती थी। उसे पुराने लेकिन अच्छे कपडे़ मिल जाते, जिन्हें पहनकर वह फूली नहीं समाती। स्वयं पर ही रीझ जाती। माई-बापू भी खुश हो जाते। उन्हें लगता सूमटी अब बड़ी हो गई है। 

जब चौथे साल स्थिति कुछ सुधरी तो उसने भगवान का शुक्रिया अदा किया ..वह और उसकी लुगाई काफी अर्से से सूमटी के ब्याह को लेकर चिन्तित थे। उन्होंने  कुछ पैसा भी जमा किया था, जिससे वे आसानी से उसका ब्याह निपटा सकें।   

वह अपने परिवार के साथ घर लौटा। उसने ब्याह की बात भी चलाई पर किसी ने कोई उत्साह नहीं दिखाया। मटक-मटक कर चलने, मन्द-मन्द मुस्कराने एवं साफ सुथरे रहने पर सूमटी पातरकहलाने लगी; जिसका मजाक  या मजा तो लिया जा सकता है, पर वह किसी की ब्याहता नहीं हो सकती। धीरे-धीरे ये बातें उसके मन में धँसने लगीं, तो उसे लगा उसे अपने ही देस से बेदखल किया जा रहा है।

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दुपहरिया

 

ग्रीष्म की चौन्धियानेवाली दुपहरिया की धूप आँगन में ऐसी पसरी पड़ी है, जैसे अल्हड जवानी। तपती धूप की चौंध से भागे कौए पेड़ों की शाखों पर बैठे काँव-काँव कर रहे हैं। सड़क खाली पड़ी है निष्प्राण। हवाएँ शिरीष के पेड़ों की सूखी फलियों को हिचकोले दे चूडियों के खनखनाने-सी आवाज दे रही है। घरों के दरवाजे बन्द हैं। धूप चुहिया की तरह दुबकती हुई दरवाजों में घुसने का यत्न कर रही है। सारा वातावरण उनींदासा हो रहा है।

हर कोई धूप के ढलने की प्रतीक्षा कर रहा है, जैसे ढलते ही सब कुछ ठीक हो जायगा। यौवन की देहरी पर जब कोई कदम रखता है, लोग ऐसे ही कहते हैं। तेजस्विता व्यावहारिक तौर पर मानवीय गुण नहीं माना जाता।मोडरेशनएक सामाजिक गुण है। तेजस्विता तो दैविक होती है। अत: वह प्रशंसनीय और पूजित हो सकती है।

जीवन को स्मूथली जीने के लिए, समाज में बने रहने के लिए मोडरेशनएक मूलभूत आवश्यकता है। अपने व्यक्तित्व की अलग पहचान जैसे समाज के लिए खतरा बन जाती हो। बचो! तेजस्विता से, नहीं तो भस्म हो जाओगे।

यह अलग बात है कि मोडरेशनयुवा मानस को संघर्ष से विलग कर उसे समाज के डैडवुडका हिस्सा बना देती है।

तभी तो लोग अक्सर कहा करते हैं कि थोड़ा यौवन ढलने दो, सब स्वत: ही ठीक हो जायगा। जैसे अब ठीक नहीं है। मानो यौवन का उत्साह कुछ कर गुजरने की चाह, समाज की बूढी दीवारों को तोड़ने की ललक, जिसमें वह कैदी है, निरर्थक एवं बेमानी हो।

जो दैविक है, वह मानवीय क्यों नहीं है? जब ढलती धूप सुहानी हो सकती है, उगती किरणें सुनहरी हो सकती हैं, तो चकाचौंध भरी, तपती दुपहरिया का ही क्या कसूर कि वह उज्जड, उदास और बेनूर हो।

 

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अफसर

 

कमरे  में घुसते ही एयरकंडीशन का एहसास होता है। वह कुर्सी पर बैठने का आग्रह कर, मेरी सम्पूर्ण गर्मी सोख लेता है। कुर्सी में बैठ कर कालीन पर पाँव जमाता हूँ। कालीन पर बड़ा सा मेज, मेज पर ग्लास, उसमें बनती स्टेनो और उसकी युगल तस्वीर। एग्जिक्यूटिव चेयर और उस पर झूलते चीफ एडमिनिस्ट्रेटर। रंग-बिरंगे टेलीफोन। फाइलों से भरी ट्रे। कुछ देर तक वे फाइल देखते हुए डिक्टेशन देते हैं। उनकी नजरें कहीं दूर रहती है सोचने के अन्दाज में। मैं अपने आप को व्यवस्थित करने की कोशिश करता हूँ।    

 

अचानक ही बोले, “यह है मिस फर्नांडीज और आप है मिस्टर चटर्जी यूनियन के नेता।उन्होंने स्टेनो से परिचय कराया,“ और सुनाईए! कैसे हालचाल हैं?”   

सब ठीक है, आपकी मेहरबानी है।औपचारिकता वश मुझे निरर्थक शब्द बोलने पड़े।  

क्या सेवा करूँ?” कहकर उन्होंने कॉल बेल बजाई, चपरासी आया।

चाय ले आओ।वह आदेश सुनकर चला गया।      

कमरे की ठंडक मेरे जेहन में पैठ रही थी। मैं जिस काम के लिए आया था कहीं अनसुना ही न रह जाय इसलिए बोला, “सर! वही पे-रिविजन वाली प्रॉब्लम थी।           

सालभर हो गया, अब तो होना ही चाहिए। चाहता हूँ दीवाली के पहले एरियर दिला दूँ। फाइनेंशियल सैंक्शन के लिए हैड ऑफिस को लिखता हूँ।   

 

सर, यह तो आप कई दफे कह चुके हैं। वैसे दूसरी सैंक्शन तो आती रहती है।                  

 

भई सरकारी काम है, होतेहोते ही होगा।उन्होंने मेरे वाक्य के उत्तरार्ध की तरफ ध्यान नहीं दिया। शायद उन्होंने भाँप लिया था कि सैंक्शन नहीं आई वाला बहाना नहीं चलेगा।          

 

सर, इस बार तो करना ही होगा। कर्मचारियों में रोष है।मेरा स्वर कठोर था।          

 

वे शान्त भाव से फिर फाइल पलटने में व्यस्त हो गए।    

 

लीजिए चाय पीजिए!

फिर समझाने के अन्दाज में बोले, “भई क्या करूँ! मेरे पास फाइनेंशियल पावर तो है नहीं।   

हमें सस्पेंड करने की, टर्मिनेट करने की तो पावर है आपको। 

 वो तो है। इसमें फाइनेंस इन्वाल्व नहीं होता न इसलिए।   

पावर किसके पास है? वहीं जाकर खटखटाएँगे।मैंने खड़े होते हुए कहा।                       

इस मशीनरी में यही तो पता नहीं लगता।उन्होंने मुस्कराते हुए कहा।             

यह पता नहीं लगने देना ही आपका काम है।मैं तैश में आ गया, “आप खामखा सालभर से लटकाते आ रहे हैं। आप खुद काम नहीं करना चाहते। 

गेट आउट! मुझे बकवास सुनने की आदत नहीं है।     

पे-रिविजन तो तेरे चचा को भी करना पड़ेगा।और मैं लम्बे डग भरते हुए चेंबर से बाहर आ गया।   

 

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